Aman Mishra

Add To collaction

रुद्र : भाग-१

मुंबई शहर हमेशा से ही सुर्खियों में रहा है। कुछ दशकों पहले माफिया के द्वारा फैलाई गई दहशत के लिए और उसके बाद देश की आर्थिक राजधानी के रूप में। सालों तक लोग इस शहर की चकाचौंध में हँसी-खुशी जी रहे थे। चारों और खुशहाली और तरक्की थी।
       लेकिन न जानेे इस शहर को किसकी नजर लगी। पिछले एक साल से यहाँ का हर एक इंसान, बच्चे से लेकर बूढ़े तक, सभी के सभी एक बार फिर दहशत के साये में जी रहे हैं। पुलिस डिपार्टमेंट भी कुछ भी करने में अक्षम है। लाखों लोगों के डर का केवल एक ही कारण है......आर्या।

स्थान:पुलिस मुख्यालय, मुंबई

          बड़े से कमरे में एक लंबी सी मेज के इर्द-गिर्द
   कई सारे पुलिस अफसर बैठे थे। मेज के आगे वाले सिरे पर कमिश्नर वी. एस. खन्ना बैठे हुए थे जो आज की इस महत्वपूर्ण मीटिंग की शुरुआत करने वाले थे। कमिश्नर साहब पचपन साल के होते हुए भी गठीले शरीर और रौबदार व्यक्तित्व के मालिक थे। बड़े से बड़ा अपराधी भी उनके आगे थर-थर कांपता था। लेकिन आज उनके माथे पर भी चिंता की लकीरों को साफ देखा जा सकता था।आज सभी बेहद विचलित और भयभीत नजर आ रहे थे। कमिश्नर की दायीं ओर एसपी विराज शर्मा और उनके बायीं ओर सीनियर इंस्पेक्टर विकास चौहान और सीनियर इंस्पेक्टर अभय शेखावत बैठे हुए थे। एसपी विराज 5 फुट 10 इंच लंबे और कसरती शरीर वाले हैं। डिपार्टमेंट में इन्हें लोग इनके शांत स्वभाव के लिए जानते हैं।एसपी विराज सादगी पसंद हैं और हमेशा क्लीन शेव रखते हैं। अभय , विकास और विराज तीनों स्कूल के समय के दोस्त हैं। जहाँ अभय की खासियत है उसका गुस्सा तो वहीं दुबले-पतले विकास की खासियत है उसका तेज दिमाग। पर इस बार इन तीनों की टीम भी कुछ कमाल नहीं दिखा पा रही है।
          बाकी सारे अफसरों के डर का एक बड़ा कारण यह भी था कि इस बार पुलिस डिपार्टमेंट की शान माने जाने वाले एसपी विराज, इंस्पेक्टर अभय और इंस्पेक्टर विकास भी कुछ नहीं कर पा रहे थे। सभी शांत बैठे हुए थे। किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए इस आर्या नाम के तूफान को रोकने के लिए।

  "जैसा कि आप सभी जानते हैं, आज की ये मीटिंग शहर में आपराधिक मामलों की लगातार बढ़त को लेकर रखी गयी है। हमारा डिपार्टमेंट बुरी तरह कमजोर पड़ता जा रहा है उस माफिया डॉन आर्या के आगे।" कहते हुए कमिश्नर खन्ना ने शांत वातावरण की चुप्पी को तोड़ते हुए एक नजर बाकी अफसरों पर दौड़ाई।
    "सर हम पूरी कोशिश कर रहे हैं। लेकिन इस समस्या का कोई समाधान नजर नहीं आ रहा है और कल की उन दोनों पुलिस ऑफिसर्स की हत्या के बाद से हमारे डिपार्टमेंट में भी कहीं न कहीं डर बैठ गया है।"
   " हाँ सर।" इंस्पेक्टर विकास की बात से सहमत हो कर इंस्पेक्टर अभय और एसपी विराज ने हामी भरते हुए कहा।
   "बात तो तुम लोगों की सही है। ये खतरा अब बढ़ता ही जा रहा है। लेकिन हम इस तरह हाथ पर हाथ धरे भी तो नहीं बैठ सकते। जनता का हमारे डिपार्टमेंट से भरोसा उठता जा रहा है। शहर में हर तरह का गैर-कानूनी काम धड़ल्ले से हो रहा है, और ये जानते हुए भी की इन सभी अपराधों में कहीं न कहीं आर्या शामिल है, हम उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकते।" कमिश्नर साहब ने भारी निराशा के साथ कहा।
      "हमें तो ठीक से इस आर्या के बारे में कोई जानकारी भी नहीं है। पता नहीं अचानक से कैसे आ गया और पूरे शहर में अपने नाम की दहशत फैला दी। आमतौर पर माफिया जैसे लोग, लोगों से दूर छिपकर रहते हैं, ताकि हम उन तक पहुंच न सकें। लेकिन इसने तो अपने पाप का साम्राज्य शहर की सीमा के बाहर ही बसाया हुआ है, लेकिन हम उसतक पहुंच पाने में असमर्थ हैं।" एसपी विराज ने शांत स्वर में कहा।

   "सर हमारा साइबर सेल डिपार्टमेंट जी-जान से इस आर्या के बारे में जानकारी जुटाने में लगा हुआ है। शायद इससे हमारी कुछ मदद हो सके।" सीनियर इंस्पेक्टर विकास ने आशा जताते हुए कहा।

    कमिश्नर साहब कुछ कहते इसके पहले ही इंस्पेक्टर अभय की फोन की रिंग ने सबका ध्यान उस ओर खींचा। अभय ने थोड़ी नाराजगी के साथ फोन उठाया और कहा, "क्या है पाटिल? कहा था ना की मीटिंग में जा रहा हूँ।"
   कुछ देर तक अभय सिर्फ फोन के दूसरी तरफ से पाटिल की बात सुनता रहा और उसके चेहरे के बदलते हुए भाव ये साफ जाहिर कर रहे थे कि दूसरी तरफ जो था उसकी बातों से अभय को कुछ खास पता चला है।
      "वेल डन पाटिल।" कहते हुए इंस्पेक्टर अभय ने फोन को जेब के हवाले किया।
     " सर, कांस्टेबल पाटिल का फोन था। उसने बताया की आर्या के पास्ट के बारे में बहुत कुछ पता चला है। मुझे अभी स्टेशन जाना होगा। मैं वहाँ जाकर सारी इन्फॉर्मेशन आपको देता हूँ।.....जय हिंद सर!" सैल्युट करते हुए इंस्पेक्टर अभय ने कहा।
    
      " बहुत अच्छे। ठीक है तुम जाओ और जल्द से जल्द सारी इन्फॉर्मेशन शेयर करो। इंस्पेक्टर विकास तुम भी अभय के साथ जाओ।"
     "सर!" एक साथ अभय और विकास ने सैल्यूट करते हुए कहा और बाहर की ओर निकल पड़े।
 

**************

      रात के समय अंधेरा तो आम बात है। लेकिन आजकल शहर में चारों और अंधकार ही फैला हुआ है। चहल-पहल तो दिन में भी कम हो गयी है, रात को तो कोई भूल से भी घर के बाहर कदम नहीं रखता। सभी लोग अपने-अपने घरों की लाइट्स बंद करके सो चुके हैं।
      लेकिन इसी वक्त शहर के बाहरी इलाके में स्थित बंगले में अभी भी रोशनी फैली हुई है। वैसे इसे महल कहना भी गलत नहीं होगा। देखने में यह जगह जितनी सुंदर है, लोग उससे उतना ही दूर भागते हैं।  यह किसी भूत-प्रेत का चक्कर नहीं है। लोग तो इस जगह से इसलिए डरते हैं क्योंकि ये उनके लिए रावण की लंका है। और वो रावण कोई और नहीं...... आर्या है।
       बड़े से काले रंग के लोहे के गेट से बंगले का मुख्य दरवाजा सौ मीटर की दूरी पर है। दरवाजे पर इस समय भी पाँच लोग राइफल लिए मुश्तैदी के साथ खड़े हुए हैं। और इसी तरह के सौ से ज्यादा गुंडे पूरी तरह से इस जगह की निगरानी में लगें हुए हैं। सभी को पता है, कि जो कोई भी आर्या की मर्जी के खिलाफ अगर इस जगह घुसपैठ करेगा तो उसे मौत ही मिलेगी। इस बात का हालिया उदाहरण है, उन दो पुलिसवालों की मौत। बाहर कई सारी गाड़ियों का खड़ा होना और घर के हॉल की लाइट्स का जलना यह दर्शाता है कि इस वक़्त अंदर कुछ मीटिंग हो रही है।
       
           तीन आगे की ओर खड़े हैं जो की शक्ल से ही बदमाश नजर आ रहे हैं। सामने सोफे पर लगभग छह फीट का लंबा चौड़ा, गोरा आदमी बैठा है। घनी दाढ़ी-मूँछ, महँगा सूट और हाथ में गन लिए हुए ये आदमी काफी सख्त व्यकितत्व वाला लगता है। दाहिने हाथ की चार कटी हुई उँगलियाँ और उसकी बायीं आँख के नीचे मौजूद पुराने घाव का निशान उसे और भी ज्यादा खूँखार बता रहे थे। उसकी आंखों में हैवानियत साफ झलक रही थी। हो भी क्यों न, यही तो है लाखों लोगों के डर का कारण..... जुर्म के जगत का बेताज बादशाह..... आर्या!!!!

***************

       "मे आइ कम इन सर?", कमिश्नर ऑफिस के बाहर खड़े इंस्पेक्टर अभय ने दरवाजे को खटखटाते हुए कहा।
       "आओ अभय। बताओ क्या पता चला है उस आर्या की हिस्ट्री के बारे में।"
       "सर बहुत कुछ पता चला है। इसका पूरा नाम है करणवीर बलराज आर्या। आर्या अचानक से ही इस शहर में नहीं आया, बल्कि ये बचपन से ही इसी शहर में रहा है। इसके पिता एक ज्वेलरी शॉप के मालिक थे और ये उनकी बिगड़ी हुई औलाद। ये भी पता चला है कि उसका क्रिमिनल रिकॉर्ड भी है।" अभय के इतना कहते ही कमिश्नर साहब थोड़ा चौंक गए।

   "क्या? लेकिन हमारे क्रिमिनल डेटाबेस में तो उसका नाम है ही नहीं।" कमिश्नर साहब के चेहरे पर आश्चर्य साफ झलक रहा था।

    "हाँ सर। उसका कोई रिकॉर्ड हमारे डेटाबेस में नहीं है। मुझे भी इसके बारे में सारी जानकारी इंटेलिजेंस ब्यूरो से मिली है। हमारे पास उसका रिकॉर्ड इसलिए नहीं है क्योंकि उस वक़्त उसके चाचा यहाँ के मंत्री थे और उन्होंने इस मामले को रफादफा कर दिया था।" इंस्पेक्टर अभय ने गंभीरता से कहा।

    "तो ये बात है। लेकिन मामला था क्या? और उस केस का इंवेस्टिगेटिंग ऑफिसर कौन था?" कमिश्नर खन्ना ने पूछा।

      "सर इंवेस्टिगेटिंग ऑफिसर की भी पहचान छुपा दी गई और उसकी कोई जानकारी नहीं है।
पर मामला ऐसा था कि आर्या शहर के नामी इंजिनीरिंग कॉलेज, जिंदल टेक्निकल इंस्टिट्यूट
में पढ़ता था। उसने उसी कॉलेज की एक लड़की को प्रोपोज़ किया था और उस लड़की ने इनकार कर दिया। इस बात से आर्या आगबबूला हो गया और अगले दिन उसने उस लड़की पर एसिड से अटैक करने की कोशिश की।" इंस्पेक्टर अभय न थोड़े गुस्से के साथ कहा।

     "मतलब इस राक्षस ने उस लड़की की पूरी जिंदगी बर्बाद कर दी? ऐसी मानसिकता वाले लोगों को तुरंत फांसी दे देनी चाहिए। ना जाने क्या गुजरी होगी उस लड़की और उसके परिवार पर।" कमिश्नर साहब ने गुस्से और निराशा के मिश्रित भावों के साथ कहा।

      "सर आपकी बात बिल्कुल सही है। लेकिन उस लड़की को कुछ नहीं हुआ। उस दिन उस लड़की को उसी कॉलेज में पढ़ने वाले एक लड़के ने बचा लिया था। उसके बाद आर्या ने आपा खो दिया और उस लड़के पर चाकू से हमला करने की कोशिश की।
लेकिन आर्या उस लड़के का कुछ बिगाड़ न सका। बल्कि, उस मुठभेड़ में उसने अपने दाहिने हाथ की चार उँगलियाँ गँवा दी। और तो और उस आर्या के चेहरे पर जो घाव का निशान है, वो भी उसी लड़के ने उसे दिया था। इस घटना के बाद आर्या कहीं चला गया और फिर सीधे पिछले साल इस शहर पर कहर बनकर आ गया।" ये कहते हुए इंस्पेक्टर अभय के चेहरे पे गुस्सा साफ दिख रहा था।

       "मतलब उस आर्या को भी कोई ना सिर्फ  टक्कर दे चुका है। बल्कि उसे पछाड़ भी चुका है? उस लड़के के बारे में कुछ पता चला है क्या?" कमिश्नर खन्ना आश्चर्य से बोले।

      "सर उस लड़के की सारी जानकारी पहले से ही पता है। वो लड़का, मैं, विकास और एसपी सर एक ही स्कूल में थे, और हम चारों बचपन से ही अच्छे दोस्त हैं। बस हमारे कॉलेज अलग-अलग थे। उसका नाम है रुद्र रघुवंशी श्रीराम ग्रूप ऑफ इंडस्ट्रीज के मालिक का बेटा।" इंस्पेक्टर अभय ने चेहरे पर एक मुस्कान के साथ कहा।

     "श्रीराम ग्रूप ऑफ इंडस्ट्रीज  के मालिक का बेटा! यानी कि देश के एक नामी उद्योगपति का वारिस। अभी वो कहाँ है?" कमिश्नर साहब ने पूछा।

     "सर जहाँ तक मुझे पता है, वो अभी हैदराबाद की किसी आईटी कंपनी में ट्रेनिंग कर रहा है। शायद दो-तीन दिनों में लौटने वाला है।" इंस्पेक्टर अभय ने सोचते हुए कहा।

      "ठीक है। हो सकता है रुद्र हमें आर्या के बारे में कुछ खास जानकारी दे सके। रात बहुत हो गयी है। अब तुम भी घर जाओ। मैं भी कुछ देर में निकलता हूँ।" कमिश्नर साहब ने कुछ जरूरी फाइलें समेटते हुए कहा।

       इंस्पेक्टर अभय ने कमिश्नर खन्ना को सैल्युट किया और आफिस से चला गया।





     क्या पुलिस डिपार्टमेंट कुछ कर पाएगा इस आर्या से शहर की रक्षा करने के लिए? क्या रुद्र ही इस आर्या का विनाश करेगा? मिलिए इस कहानी के नायक रुद्र रघुवंशी से इस कहानी के अगले भाग में।


क्रमशः





    ये है मेरी पहली कहानी। शायद कुछ गलतियाँ भी हुई हों। सभी पाठकों से आग्रह है की समीक्षा दे कर मुझे मेरी गलतियों से अवगत कराएँ।🙏😊

     
  
     
   

    
    

       

   13
5 Comments

Arman

27-Nov-2021 12:05 AM

Superb

Reply

Zeba Islam

21-Nov-2021 06:04 PM

Nice

Reply

BhaRti YaDav ✍️

30-Jul-2021 06:49 AM

Nice

Reply